नई दिल्ली: जिस तरह आज हर बच्चे के हाथ में मोबाइल या टैबलेट दिख जाता है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो 2050 तक इंडिया के हर दो में से एक बच्चा मायोपिया (नज़दीक की चीज़ साफ़ दिखना, दूर की धुंधली) का शिकार हो सकता है। Ophthalmic & Physiological Optics की रिपोर्ट के अनुसार आजकल स्क्रीन बच्चों की ज़िंदगी का ऐसा हिस्सा बन गई है। बच्चों के दिन की शुरुआत से लेकर रात तक खेल, पढ़ाई और एंटरटेनमेंट—सब कुछ इन्हीं पर टिका है। लेकिन इसी आदत ने अब नई परेशानियों को जन्म देना शुरू कर दिया है।
डॉक्टरों का कहना है कि छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम बढ़ने से नज़दीक की नज़र कमजोर होने लगी है। नींद जल्दी नहीं आती। चिड़चिड़ापन जैसी दिक़्क़तें तेज़ी से बढ़ रही हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में Cureus जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के हवाले से बताया गया कि पांच साल से छोटे बच्चों में से आधे से ज़्यादा जिन्हें लंबे समय तक स्क्रीन देखने की आदत थी, उनमें थकान, सिरदर्द, नींद न आने और मूड स्विंग जैसी समस्याएं पाई गईं।
कर्नाटक के MM Joshi Eye Institute की डॉ. दीप्ति जोशी कहती हैं—“लंबे वक्त तक स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखों की सेहत पर सीधा असर पड़ता है। चश्मे का नंबर तेजी से बढ़ता है। स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट बच्चों के रेटिना को नुकसान पहुंचाती है, दूसरी तरफ नींद को बिगाड़ देती है। राजकोट की सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के एक सर्वे में पाया गया कि 81% बच्चे 10 साल से कम उम्र के खाने के दौरान भी मोबाइल या टीवी पर ज्यादातर कार्टून देख रहे हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों को स्क्रीन टाइम पर सख़्त लिमिट लगाइए। तय करें कि बच्चा कितनी देर तक मोबाइल, टैबलेट या टीवी देखेगा। 20-20-20 नियम अपनाइए। हर 20 मिनट स्क्रीन देखने के बाद, 20 सेकंड के लिए, 20 फीट दूर किसी चीज़ को देखना। यह आंखों को आराम देता है। कुछ कंपनियों जैसे OPPO Pad SE ने बच्चों की आंखों की सुरक्षा को ध्यान में अपने डिवाइस को लो ब्लू लाइट और फ़्लिकर-फ्री डिस्प्ले से लैस किया है।